भारतीय परंपरा के अनुसार हम अपने बड़ों का चरण स्पर्श करके अथवा प्रणाम करके अभिवादन करते हैं तो बड़े अपने हाथों को हमारे सर पर रख कर या दूर से ही अपना हाथ उठाकर हमें आशीर्वाद करते हैं गुरु और शिष्य के मध्य भी ऐसा ही होता है।
पर क्या हाथ उठाने से आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है और होता है तो किस रूप में होता है ? वास्तव में हम सभी से एक ऊर्जा प्रतिपल प्रवाहित होती रहती है जो कि विकिरण के रूप में होती है।
जो व्यक्ति जिस प्रवृत्ति का होता है वह उसी प्रकार की ऊर्जा का संचार करता है। यही स्पंदन आशीर्वाद या श्राप के रूप में हमें प्राप्त होते हैं।
सहजयोग में आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति के पश्चात् हम जान पाते हैं कि परमात्मा का चैतन्य हमारे चारों ओर चैतन्य लहरी के रूप में सदैव विद्यमान रहता है।
आदिशक्ति श्रीमाताजी निर्मला देवी के अनुसार, प्रकृति में सभी जीवंत कार्य वाइब्रेशन अर्थात् तरंग के माध्यम से ही होते हैं जैसे सूर्य के प्रकाश का पृथ्वी तक पहुंचना, नाद अर्थात आवाज़ का हमारे कानों तक पहुंचना हवा का चलना इत्यादि।
इसके अतिरिक्त भी आप अनेक भावों के नकारात्मक या सकारात्मक प्रभाव को तरंगों के माध्यम से अनुभव करते हैं जैसे प्रेम, नफरत, क्रोध, करुणा इत्यादि परंतु सूक्ष्मता के ज्ञान के बिना आप इन तरंगों को पूर्ण रूप से नहीं समझ पाते।
कुंडलिनी जागरण तथा आत्म साक्षात्कार के पश्चात चैतन्य लहरियां प्रकाश की तरह बहने लगती हैं, और उनके प्रकाश में आप देख सकते हैं कि अच्छी चीज क्या है? और बुरी चीज क्या है?
जब आप इन चैतन्य लहरियों का सच्चा ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। जो कि श्रीमाताजी के आशीर्वाद से ही संभव हैं तो वाइब्रेशंस के द्वारा आप परम चैतन्य की कार्य प्रणाली का माध्यम बन जाते हैं
तब आपके द्वारा अनेक रोगों का उपचार किया जा सकता है, अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है तथा अन्य अनेक लोगों की कुंडलिनी जागृत की जा सकती है, परंतु यह सब तभी संभव है जब आप स्वयं आत्म साक्षात्कारी हो जाते हैं तथा स्वयं के सच्चे गुरु बन जाते हैं।